छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज हवन के दौरान हमेशा स्वाहा कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मुख्य कारण क्या है. ऐसा क्यों होता है? चलिए बत...
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हवन के दौरान हमेशा स्वाहा कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मुख्य कारण क्या है. ऐसा क्यों होता है? चलिए बताते हैं आपको इसका कारण. दरअसल अग्नि देव की पत्नी हैं स्वाहा. इसलिए हवन में हर मंत्र के बाद इसका उच्चारण किया जाता है. स्वाहा का अर्थ हा सही रीति से पहुंचाना. मंत्र का पाठ करते वक्त स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री को अर्पित करते हैं.
कोई भी यज्ञ तब कर सफल नहीं होता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें. लेकिन, देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए.पौराणिक मान्यता के मुताबिक स्वाहा को अग्निदेव की पत्नी भी माना जाता है. हवन के दौरान स्वाहा बोलने को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. चलिए बताते हैं.
कथा के मुताबिक स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निगेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्मान किए गए देवता को प्राप्त होता है,वहीं दूसरी पौराणिक के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए. स्वाहा की उत्पत्ति से एक अन्य रोचक कहानी भी जुड़ी हुई हैइसके मुताबिक स्वाहा प्रकृति की ही एक काल थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे. यज्ञीय प्रयोजन तभी पूरा होता है जबकि आह्मान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए.
कथा के मुताबिक स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निगेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्मान किए गए देवता को प्राप्त होता है,वहीं दूसरी पौराणिक के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए. स्वाहा की उत्पत्ति से एक अन्य रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है.
इसके मुताबिक स्वाहा प्रकृति की ही एक काल थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे. यज्ञीय प्रयोजन तभी पूरा होता है जबकि आह्मान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए।
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