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कैमिकल नष्ट कर रहे हैं मानव और जानवरों के शुक्राणु

  छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज  । शुक्राणु संख्या (Sperm count) के स्तर में इतनी कमी आई है कि वह प्रजननता (Reproductivity) के हिसाब से काफी कम मानी ...

 


छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज । शुक्राणु संख्या (Sperm count) के स्तर में इतनी कमी आई है कि वह प्रजननता (Reproductivity) के हिसाब से काफी कम मानी जा सकती है. काउंटडाउन नाम की एक किताब में यह दावा किया है कि पश्चिमी पुरषों में शुक्राणु संख्या पिछले चालीस सालों में आधी रह गई है. इतना ही नहीं यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले चालीस सालों में प्रजनन क्षमता खत्म हो जाएगी.

यह दावा महामारीविद शैन स्वान की नई किताब काउंटडाउन में किया गया है जिसमें इस दावे के समर्थन में बहुत से प्रमाण बताए गए हैं. यह वाकई चौंकाने वाला दावा है कि इतने कम समय में पुरषों की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाएगी. कन्वर्सेशन में प्रकाशित लेख में इस बारे में जानकारी देते हुए बताया गया है कि इसका मतलब यह है कि उस लेख को पढ़ने वाले हर व्यक्ति में आपने दादा की औसत शुक्राणु संख्या की आधी रह गई है. 

इंसान और वन्यजीवन दोनों में हो रहा है ऐसा

लेख मे कहा है कि अगर इसका तार्किक तरीके आंकलन किया जाए तो किसी पुरुष में साल 2060 के बाद प्रजनन क्षमता नहीं रह जाएगी. दुर्भाग्य से इन चौंकाने वाले दावों के साथ बहुत से प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं जिसमें प्रजनन विसंगतियों और गिरती हुई प्रजननता इंसान और वन्यजीवन दोनों में पाई जा रही है. कैमिक्लस हैं प्रमुख वजह यह कहना मुश्किल है कि क्या चलन जारी रहेगा या नहीं. अगर ऐसा हुआ तो मानव जाति विलुप्त हो सकती है. लेकिन इसके प्रमुख कारणों में से एक का पता चल गया है और वह है कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में मौजूद कैमिकल्स. ऐसे में आज हमें अपने शरीर पर इस कैमिकल्स के प्रभावों को रोकने की बहुत ज्यादा जरुरत है।

ऐसे बहुत से शोध हैं स्वान ने ने अपनी किताब में बहुत से शोधों का उल्लेख किया है. यह सच भी है कि ऐसे बहुत से शोध हो चुके हैं जो दर्शाते है कि मानव में शुक्राणु संख्या कम होती जा रही है. स्वान का कहना है कि साल 2045 तक बहुत से जोड़े अपने बच्चों को पैदा करने के लिए दूसरे प्रजनन उपायों को अपनाने को मजबूर होंगे. इसके साथ गर्भपातकी दर और प्रजनन संबंधी अन्य समस्याएं भी बढ़ती जा रही है जो पुरुषों में शुक्राणु संख्या कम करती जा रही है।

 इसके बहुत सारे कारण हैं जिसे पिछले 50 सालों में आए लाइफस्टाइल बदलावों के साथ डाइट कसरत, मोटापा, शराब के सेवन आदि में आए बदलाव शामिल हैं, इसमें योगदान दे रहे हैं. लेकिन हाल वर्षों में शोधकर्ताओं ने भ्रूण स्तर की ओर संकेत किया है जो लाइफस्टाइल जैसे कारकों से पहले ही निर्णायक होती है. इसके तहत जब भ्रूण अपनी पौरुष विशेषताओं को विकसित कर रहा होता है, हार्मोन में बदलाव भविष्य में विकसित होने वाली उसकी प्रजनन क्षमताओं के प्रभावित कर देते हैं. यह पहले जानवरों में सिद्ध हो चुका था, लेकिन अब मानवीय अध्ययन भी यही कहने लगे हैं. हर जगह हैं ये कैमिकल्स यह हार्मोन संबंधी व्यवधान कैमिकल्स की वजह से होता है 

जो हमारे दैनिक जीवन के उत्पादों में आते हैं

इनकी खुद ही हार्मोन की तरह काम करने की क्षमता होती है या ये उनके शुरुआती विकास में बाधा बन कर उनके काम करने की क्षमता को विकसित होने से रोक देते हैं. ये कैमिकल्स केवल खानपान से ही नहीं बल्कि हवा से सांस के जरिए भी हमारे अंदर पहुंच जाते हैं. हमारे वातावरण और मा के गर्भ में पल रहे शिशु के वातारण को हानिकारक कैमिल्कल से बचाने के सख्त कानून की भी जरूरत है ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन इसके लिए कानून बना रहे हैं. लेकिन केवल जैसा की स्वान कहते हैं कि यह मुश्किल है लेकिन कुछ हद तक कारगर जरूर है.


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