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क्या आपको ये पता है कि बर्फीले इलाकों में तापमान मापने के लिए किस तरह के थर्मामीटर का इस्तेमाल किया जाता है ? बर्फीले इलाकों में तापमान अक्सर माइनस से भी काफी नीचे होता है । इन इलाकों में मर्करी वाले थर्मामीटर किसी काम के नहीं रहते हैं। असल में ये थर्मामीटर मर्करी यानी पारे से बना होता है, जो कम तापमान पर जम जाता है। इस वजह से बर्फीले इलाकों में अल्कोहल वाले थर्मामीटर उपयोग में लाए जाते हैं। क्योंकि अल्कोहल का फ्रीजिंग पॉइंट मर्करी से कम होता है। जहां शुद्ध अल्कोहल -115 डिग्री सेल्सियस पर जमता है, वहीं मर्करी -38 डिग्री सेल्सियस पर ही जम जाता है।
अल्कोहल थर्मामीटर को स्पिरिट थर्मामीटर भी कहा जाता है। ऐसे थर्मामीटर में इथेनॉल, टॉल्युइन या केरोसिन को इस्तेमाल में लाया जाता है। स्पिरिट थर्मामीटर 78 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान से लेकर माइनस 112 डिग्री सेल्सियस जितने कम तापमान में काम करने में सक्षम होता है।
इसके साथ ही मर्करी थर्मामीटर के अपेक्षा स्पिरिट थर्मामीटर कम खतरनाक होता है। अगर मर्करी से भरा थर्मामीटर टूट गया तो जानलेवा हो सकता है। क्योंकि मर्करी 65 डिग्री फैरनहाइट में ही भाप बन जाता है और सांसों के जरिए भीतर जा सकता है। ऐसे में यह बच्चों, बूढ़ों या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है।
अल्कोहल थर्मामीटर के टूटने से कोई ज्यादा खतरा नहीं है। क्योंकि ये तुरंत वाष्प बन जाता है। अगर ये तुरंत वाष्प में परिवर्तित नहीं भी होता है, तो ये इंसानों या पार्यावरण के लिए खतरनाक नहीं है। इसके साथ ही अल्कोहल थर्मामीटर बहुत सस्ता होता है। इस वजह से बर्फीले इलाकों में पहले से ही ऐसे थर्मामीटर स्टॉक कर लिए जाते हैं।
थर्मामीटर की खोज का श्रेय डैनियल गैब्रियल फैरेनहाइट को दिया जाता है। उन्होंने साल साल 1709 में इसकी खोज की और उन्हीं के नाम पर थर्मामीटर के मानक को फैरनहाइट कहा गया। अल्कोहल से थर्मामीटर बनाने का काम डेनमार्क के एस्ट्रोनॉमर ओलास रोमर ने किया था। इसके बाद कई वैज्ञानिकों ने इसमें कई तरह के बदलाव किए।
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