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कुरुद में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया तीजा पर्व

  छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज मुकेश कश्यप@कुरुद:- कुरुद सहित अंचल में हर्षोल्लास के साथ तीजा का पर्व मनाया जा रहा है।पोला के पश्चात कल सोमवार को ति...

 

छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज

मुकेश कश्यप@कुरुद:- कुरुद सहित अंचल में हर्षोल्लास के साथ तीजा का पर्व मनाया जा रहा है।पोला के पश्चात कल सोमवार को तिजहारिनो ने अपने-अपने मायके में विधिवत करु भात का सेवन किया ।तदुपरांत हाथों में मेहंदी लगाते हुए आज पति परमेश्वर की लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला उपवास रखते हुए कल गणेश चतुर्थी के दिन उपवास तोड़ेंगी।छत्तीसगढ़ के लोकपारंपरिक पर्वो में तीजा पर्व का विशेष महत्व है।पति के प्रति समर्पण, आस्था व प्रेम के प्रतीक के रूप में तीजा पर्व को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।आज पर्व के अवसर बाजार में काफी भीड़ देखने को मिली।वहीँ घरों में विशेष पूजा करते हुए माताओं-बहनों ने पर्व को विधिवत मनाया।घरों में विशेष पकवान बनाये गए।

              विदित है कि मानसून के मौसम का स्वागत करने के लिए छत्तीसगढ़ और उत्तरी भारत में तीज त्योहार ('छत्तीसगढ़ी  में तीजा') मनाया जाता है। पति की लंबी उम्र की कामना और परिवार की खुशहाली के लिए सभी विवाहित महिलाओं में निर्जला उपवास रखती है (वे पूरे दिन पानी नहीं पीते हैं) और शाम को तीज माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा के बाद, वे पानी और भोजन लेती है।

तीज के एक दिन पहले सभी महिलाये एक दूसरे के घर जाकर कड़वा भोजन (छत्तीसगढ़ी में 'करू भात') का सेवन करती है। करेले की सब्जी एवं अन्य व्यंजन बनाये जाते है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया (भादो की शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन) सामान्यतः अगस्त - सितम्बर को मनाया जाता है।।

         बारिश के इस मौसम में वन-उपवन, खेत आदि हरियाली की चादर से लिपटे होते हैं। संपूर्ण प्रकृति हरे रंग के मनोरम दृश्य से मन को तृप्त करती है। इसलिए यह त्योहार हरियाली तीज या हरितालिका कहलाता है।

          पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार, देवी पार्वती ने महादेव शिव को प्राप्त करने के लिए सौ वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। अपनी अथक साधना से उन्होंने इसी दिन भगवान शिव को प्राप्त किया था।यही कारण है कि विवाहित महिलाएं अपने सुखमय विवाहित जीवन और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति लिए यह व्रत रखती हैं। परंपरा के अनुसार योग्य वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत रखती हैं।

इस दिन रेत से भगवान शंकर और माता पार्वती की प्रतिमा बनाई जाती है। उनके ऊपर फूलों का मंडल सजाया जाता है। पूजा गृह को केले के पेड़ से सजाया जाता है। यह निर्जल, निराहार व्रत है। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में फला आदि चढ़ाया जाता है। व्रत रखने वाली महिलाएं रात्रि जागरण कर भगवान शिव की आराधना करती हैं। दूसरे दिन नदी में भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा और पूजन सामग्री के विसर्जन के साथ यह व्रत पूरा होता है।

       हरियाली तीज के इस पर्व में मेंहदी, झूला और सुहाग-चिह्न सिंघारे का विशेष महत्व है। स्त्रियां मेंहदी (जो कि सुहाग का प्रतीक है) से हाथों को सजाती हैं।गांव-कस्बों में जगह-जगह झूले लगाए जाते हैं। कजरी गीत गाती हुई महिलाएं सामूहिक रुप से झूला झूलती हैं।इस विशेष अवसर पर नवविवाहिताओं को उनके ससुराल से मायके बुलाने की परंपरा है। वे अपने साथ सिंघारा लाती है। साथ ही ससुराल से कपड़े, गहने, सुहाग का सामान, मिठाई और मेंहदी भेजी जाती है, जिसे तीज का भेंट माना जाता है।

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