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गुरु के प्रति आस्था व समर्पण का पर्व है गुरुपूर्णिमा - मुकेश कश्यप

छत्तीसगढ़ कौशल न्युज कुरुद:- कहा गया है कि गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमे अज्ञानता के अंधेरे से निकालकर ज्ञान रूपी उजाले की ओर अग्रसर कराता है...

छत्तीसगढ़ कौशल न्युज

कुरुद:- कहा गया है कि गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमे अज्ञानता के अंधेरे से निकालकर ज्ञान रूपी उजाले की ओर अग्रसर कराता है। हमारा मार्ग प्रशस्त करता है।हमारी कमियों को दूर करने का प्रयास करता है।संत कबीर दास जी ने गुरु को भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया है।उक्त बातें वर्णित करते हुए नगर के समर्पित ,जुझारू व शिक्षा के क्षेत्र में सर्वोपरी योगदान देने वाले नम्र व सरल व्यवहार के धनी शिक्षक मुकेश कश्यप ने सोमवार को सभी को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाई देते हुए बताया कि गुरुपूर्णिमा भारत में अपने आध्यात्मिक या फिर अकादमिक गुरुओं के सम्मान में, उनके वंदन और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है।हम सब मनुष्यों के जीवन निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है।ऐसे में माना जाता है कि जिन गुरुओं ने हमें गढ़ने में अपना योगदान दिया है, उनके प्रति हमें कृतज्ञता का भाव बनाए रखना चाहिए और उसे ज़ाहिर करने के दिन के तौर पर ही गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।हिंदुओ की परंपरा के मुताबिक आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

मुकेश कश्यप ने बताया कि यह पर्व हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. गुरु शब्द ‘गु’ और ‘रु’ से मिलकर बना है. इसमें गु का अर्थ अंधकार, अज्ञान से है तो वहीं रु का अर्थ दूर करना या हटाना है. इस तरह से गुरु वह है जो हमारे जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करते हैं और हमें ज्ञानी बनाते हैं. गुरु से ही जीवन में ज्ञान की ज्योति से सकारात्मकता आती है।

श्री मुकेश ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्म दिवस माना जाता है. उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेद व्यास पड़ा। भारत में प्राचीन काल से ही गुरुओं की भूमिका काफी अहम रही है. चाहे प्राचीन कालीन सभ्यता हो या आधुनिक दौर, समाज के निर्माण में गुरुओं की भूमिका को अहम माना गया है. उनकी इस भूमिका को सरल और गूढ़ रूप में संत कबीरदास ने अपने दोहे के माध्यम से भी दर्शाया है। कबीर के दोहे में गुरु की महिमा

अपने दोहे में संत कबीरदास ने गुरुजनों के महत्व को श्रेष्ठ दर्जा दिया है. वे लिखते हैं-गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरु अपने, गोविंद दियो बताए।।यानी गुरु और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए- गुरु को या गोविंद को?फिर अगली पंक्ति में उसका जवाब देते हैं. वे लिखते हैं कि ऐसी स्थिति हो तो गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उनके ज्ञान से ही आपको गोविंद के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। कबीरदास ने गुरु की महिमा को एक दोहे के माध्यम से समझाया है. वे लिखते हैं-गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।

गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष।।इस दोहे में कबीरदास ने आम लोगों से कहा है कि गुरु के बिना ज्ञान का मिलना असंभव है। जब तक गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होती, तब तक कोई भी मनुष्य अज्ञान रूपी अधंकार में भटकता हुआ माया मोह के बंधनों में बंधा रहता है, उसे मोक्ष (मोष) नहीं मिलता. गुरु के बिना उसे सत्य और असत्य के भेद का पता नहीं चलता, उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं होता।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जगत गुरु भगवान शिव ने इसी दिन से सप्तऋषियों को योग सिखाना शुरू किया था।आधुनिक दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने अध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि देने के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन ही चुना था।गुरु पूर्णिमा का त्योहार भारत ही नहीं बल्कि नेपाल और भूटान में भी बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।बौद्ध धर्म को मानने वाले गुरु पूर्णिमा भगवान बुद्ध की याद में मनाते हैं. इनकी मान्यता के मुताबिक भगवान बुद्ध ने इसी दिन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था. मान्यता है कि इसके बाद ही बौद्ध धर्म की शुरुआत हुई थी।

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