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कुरुद में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा अक्ति का महापर्व,पुतरा-पुतरी बिहाव के उत्साह में डूबे बच्चे

छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज मुकेश कश्यप कुरुद:-  मंगलवार को नगर सहित ग्रामीण अंचल में छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति का महापर्व अक्ति घर-घर मे हर्षोल्लास ...


छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज

मुकेश कश्यप कुरुद:-  मंगलवार को नगर सहित ग्रामीण अंचल में छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति का महापर्व अक्ति घर-घर मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है ।सुबह से पर्व के प्रति उत्साह अपने चरम पर है। छोटे-छोटे बच्चों ने घरों में मिट्टी के गुड्डे-गुड़िया (पुतरी-पुतरा) की शादी पूर्ण रीति-रिवाज के साथ सम्पन्न करने की तैयारी में लगे है।मनमोहक मंडप सजाकर आकर्षक रूप में पुतरी-पुतरा को सजाते हुए मनभावन वैवाहिक भव्यता से साजे अपनी संस्कृति के प्रति आस्था में लोग जुटे है।

      विदित है कि छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष अक्ति महापर्व हर्षो ल्लास के साथ मनाया जाता है। अक्षय का अर्थ है, कभी न मिटने वाला, कभी न खत्म होने वाला। इसलिए इस दिन जो भी कार्य किया जाता है वह फ़लदाई होता है। इस दिन को इतना पवित्र माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन कोई भी मांगलिक कार्य किया जा सकता है। ग्रामीण अंचल में इस दिन विवाहों की धूम रहती है। 

                गांव-गांव में मुहरी एवं दफ़ड़ा बाजा की जुगलबंधी सुनाई दे जाती है, इसके साथ गुड्डे-गुड़िया के विवाह की धूम रहती है।अक्ति तिहार छत्तीसगढ़ का प्रमुख कृषक त्यौहार है। अंचल में अक्ति तिहार से खेती-किसानी का प्रारंभ हो जाता है। अक्ति माने अक्षय तृतीया, यह बैशाख मास शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला त्यौहार है। वैसे तो यह त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है। इसके मनाने के पीछे कई प्राचीन मान्यताएं हैं।

        मान्यता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ था, भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक भगवान परशुराम का जन्म दिवस माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन वेद व्यास जी ने भगवान गणेश के साथ महाभारत की रचना प्रारंभ की थी तथा सुग्रीव का जन्म भी इसी दिन माना जाता है।

          छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्रमुख देवता ठाकुर देवता को माना जाता है। वैसे तो अन्य त्यौहारों में भी ठाकुर देवता की पूजा की जाती है, परन्तु अक्ति के दिन विशेष पूजा की जाती है। इस दिन सभी किसान पलाश के पत्ते के दोने में धान लेकर गांव के बैगा के साथ ठाकुर देवता में पहुंचते हैं। परसाद के लिए महुआ, गेहूं, लाखड़ी, या अन्य धान्य के साथ चीला रोटी भी बना कर ले जाते हैं। यहाँ पहुंच कर सभी के दोने के धान को मिला दिया जाता है।

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