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कुरुद में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा पोला पर्व

  छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज मुकेश कश्यप कुरुद:- छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा व आस्था का महापर्व पोला कुरुद सहित अंचल में बहुत ही धूमधाम से मनाया गया।लो...

 

छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज

मुकेश कश्यप कुरुद:- छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा व आस्था का महापर्व पोला कुरुद सहित अंचल में बहुत ही धूमधाम से मनाया गया।लोक संस्कृति के इस महाउत्सव में दिन-भर हर्सोल्लास कावातावरण बना रहा। घरों में विधिवत मिट्टी के बैलों व खिलौनों को सजाकर उसकी पूरी सादगी के साथ पूजा अर्चना कर चीला रोटी व प्रसाद का भोग लगाया गया।तदुपरांत छोटे-छोटे बच्चों ने मिट्टी के नांदिया बैल की जोड़ियों को दौड़ाते हुए पर्व का उल्लास बिखेरा।इसी तरह पशुधनो की पूजा अर्चना की गई व उन्हे आस्था व भक्ति के साथ जनकल्याण की कामना की अर्जी लगाई गई।बैलों को आकर्षक ढंग से सजाकर पर्व की रौनकता में चार-चांद लगाया गया।

         सर्वविदित है कि पोला-पिठोरा मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को यह पर्व विशेषकर छत्तीसगढ़ में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसान‍ी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। 

यह त्योहार पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है, इस दिन पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। 

पिठोरी अमावस्या पर पोला पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए चौसष्ठ योगिनी और पशुधन का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं। इसके साथ ही इस दिन 'बैल सजाओ प्रतियोगिता' का आयोजन किया जाता है।

       पोला पर्व पर शहर से लेकर गांव तक धूम रहती है। जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं।बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। 

इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। पर्व के 2-3 दिन पूर्व से ही बाजारों में लकड़ी तथा मिट्टी के बैल जोड़‍ियों में बिकते दिखाई देते हैं।

इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की भी भरमार बाजारों में दिखाई देती‍ है। 

        यह त्योहार दरअसल कृषि आधारित पर्व है। वास्तव में इस पर्व का मतलब खेती-किसानी , जैसे निंदाई , रोपाई आदि का कार्य समाप्त हो जाना है, लेकिन कई बार अनियमित वर्षा के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। खासतौर पर छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी जैसे कई लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।जिन-जिन घरों में बैल होते हैं, वे इस दिन अपने बैलों की जोड़ी को अच्छी तरह सजा-संवारकर इस दौड़ में लाते हैं। मोती-मालाओं तथा रंग-बिरंगे फूलों और प्लास्टिक के डिजाइनर फूलों और अन्य आकृतियों से सजी खूबसूरत बैलों की जोड़ी हर इंसान का मन मोह लेती है।भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पोला पर्व कई समाजवासी बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं। बैलों की जोड़ी का यह पोला उत्सव देखते ही बनता है।इस अवसर पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें अधिक से अधिक किसान अपने बैलों के साथ भाग लेते हैं, खास सजी-संवरी बैलों की जोड़ी को इस दौरान पुरस्कृत भी किया जाता है।

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