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भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता को आदि शंकराचार्य जी ने किया मजबूत - आनंद पवार

  छत्तीसगढ़ कौशल न्युज  मुकेश कश्यप धमतरी:-  राम जानकी मठ मंदिर में मंगलवार को शिवावतार भगवान आदि शंकराचार्य का 2530 वां प्राकट्य महोत्सव मन...

 

छत्तीसगढ़ कौशल न्युज 

मुकेश कश्यप धमतरी:- राम जानकी मठ मंदिर में मंगलवार को शिवावतार भगवान आदि शंकराचार्य का 2530 वां प्राकट्य महोत्सव मनाया गया,जिसमें विप्र परिषद द्वारा भगवान आदि शंकराचार्य जी की महाआरती की गई,अवगत हो कि प्रत्येक वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयंती मनाई जाती है, इस बार यह 25 अप्रैल 2023 दिन मंगलवार को मनाया गया,प्राकट्य उत्सव में मठ मंदिर में रामधुनी का आयोजन किया गया,मंत्रोच्चार के साथ आदि शंकराचार्य जी का पूजा अर्चना कर महाआरती की गई,कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिक भी उपस्थित हुए और धर्म के प्रचार के लिए लोगों ने संकल्प भी लिया, बताया गया कि आदि शंकारचार्य की मुख्य भूमिका हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम मानी जाती है, प्रचलित मान्यताओं के अनुसार आदि शंकराचार्य को महज 8 साल की अल्प आयु में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त हो गया था, आदि शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत मे पदयात्रा कर सनातन धर्म के शक्ति केंद्र कहे जाने वाले चार धामों की स्थापना की और सनातन परंपरा को एक सूत्र में पिरोया।इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी 'शंकराचार्य' कहे जाते हैं। 

वे चारों स्थान ये हैं- 

(१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, 

(२) श्रृंगेरी पीठ, 

(३) द्वारिका शारदा पीठ और 

(४) पुरी गोवर्धन पीठ के नाम से जाने जाते है। विप्र परिषद के अध्यक्ष पंडित अशोक पाण्डे ने अपने उद्बोधन में सनातन परमपराओं और उनके निर्वहन की महत्ता बताई,उन्होंने बताया कि सनातन धर्म मे प्रचलित तिलक और शिखा रूपी पवित्र प्रतीक भगवान आदिशंकराचार्य की ही देन है,शास्त्रों में तिलक और शिखा के संबंध में बहुत सी बातें बताई गई है,यह पापों का नाश करने वाला और कष्ट हरने वाला है,प्रत्येक सनातनी व्यक्ति को तिलक और शिखा का पालन अवश्य करना चाहिए।

समाज सेवी श्री गोपाल शर्मा जी ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में आदिशंकराचार्य जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वे धर्म प्रचारक होने के साथ एक दार्शनिक भी थे,उन्होंने ही भारतीय दर्शन के सिद्धांत दिए है,उन्होने अद्वैत वेदान्त को ठोस आधार प्रदान किया। भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्म समुच्चय वाद का खण्डन किया। दिलीप राज सोनी ने बताया कि आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।

        युवा नेता आनंद पवार ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पुजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो रूप से एकता के सूत्र में बंध सके। इस कार्यक्रम में राम जानकी मठ मंदिर समिति के अध्यक्ष रोहितास मिश्रा,दीपक लखोटिया, सुरज तिवारी, संतोष तिवारी, भरत सोनी, बॉबी पवार, भजन गायक नवीन सोनी, मान श्रोती, पत्रकार दादू सिन्हा,मनीष ठोकने,कविता ठोकने, तुषार जैस, गौरव गोयल, कैलाश यादव, अनमोल सोनी, देवेंद्र, छोटू, विष्णु सहित बड़ी संख्या में भक्तगण उपस्थित रहे।

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