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बिना चारा पानी की गौठान "दुखदायी तस्वीर" सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं का अनदेखी

  छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज सत्यनारायण पटेल भाटापारा : - किसी भी सरकार की अपनी एक महत्वकांक्षी योजना होती है, जिसे साकार करने के लिए उसी के अनुस...

 


छत्तीसगढ़ कौशल न्यूज

सत्यनारायण पटेल भाटापारा : - किसी भी सरकार की अपनी एक महत्वकांक्षी योजना होती है, जिसे साकार करने के लिए उसी के अनुसार अपनी नीतियों एवं योजनाओं का सूत्रपात करना होता है, ठीक उसी प्रकार भूपेश सरकार द्वारा भी सत्ता सम्हालने के साथ ही नरवा गरवा घुरुवा बारी के द्वारा अपनी परिकल्पना प्रस्तुत की गयी, और उसी अनुसार योजनाओं का सूत्रपात भी होता हुआ दिख रहा है। इसी कड़ी में पशुपालकों की उपेक्षा एवं मालिक विहिन हो चुके गौवंश के संरक्षण के लिए गांवों में गौठान स्थापना की शुरुवात हुई, जिससे गौवंश को एक आशियाना मिले सके व दाना पानी की सुविधा मिल सके, और खेतों में घुसकर फसल को न चर दे, जिससे किसानों को नुक सान होने से बचाया जा सके ၊ ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने हेतु उक्त योजना का क्रियावन्यन किया गया। गौवंश के संरक्षण के लिए सरकार की यह अच्छी पहल है, किन्तु जमीनी स्तर पर इसके क्रियान्वयन में उदासीनता के पुट नजर आ रहें है, जिसके चलते गौठान का ढांचा तो खड़ा हो गया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर इच्छाशक्ति का अभाव स्पष्ट रुप से परिलक्षित हो रहा है, जिसके चलते करोडों रुपये खर्च होंने के बावजूद यह योजना अपनी लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होती हुई नहीं जान पड़ रही है, तथा आज भी गौवंश सड़कों पर ही विचरण करते नजर आ रहें है,

और आए दिन घटना का शिकार हो रहे है ၊ भाटापारा से आठ किलोमीटर दुर स्थित ग्राम खैरी में भी कुछ ऐसा ही दृश्य नजर आता है, जहां गौठान तो बना हुआ है लेकिन गौवंश के पीने का पानी के लिए बनाए गये बड़े बड़े टांके खाली नजर आ रहें हैं, तथा उनके चारा के लिए बनाए गये स्थान रिक्त पड़े हैं, इस संबंध में ग्रामीणों से चर्चा करनें पर जानकारी हुई कि होली के बाद से ही यहाँ गौठान की यही स्थिति है, और गौवंश पुनः इधर उधर भटकने को मजबूर हैं, जबकि भीषण गर्मी के दौर में गौठान की और भी ज्यादा आवश्यकता है। भाटापारा के निकटस्थ ग्राम खैरी में स्थित गौठान बिल्कुल सड़क के किनारे स्थित है,और यह मार्ग भाटापारा से आठ किलोमीटर दुरी पर जिला मुख्यालय बलौदाबाजार जानें का प्रमुख मार्ग है, इस मार्ग से निरंतर अधिकारियों की भी आवाजाही होती रहती है, तथा आये दिन जन प्रतिनिधियों का काफिला भी इधर से गुजरता है, किन्तु आश्चर्य है ,कि किसी के भी द्वारा इधर दृष्टिपात करनें की आश्यकता नहीं समझी गयी, और न ही सुधार की संवेदना महसूस की गयी। साथ ही साथ गांव की व्यवस्था भी इस दिशा में क्यों उदासीन है यह समझ से परे है। केवल चारो तरफ उदासीनता तथा इच्छाशक्ति का अभाव झेल रही इतनी महत्वपूर्ण योजना आज उपयोग विहीन होती नजर आ रही है , जिसकेेे लिए जनप्रतिनिधियों व सरकार की योजनाओं को क्रियावन्यन करने वाले अधिकारियों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता  है ၊ 

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